अमर चित्र कथा हिन्दी >> महर्षि दयानंद महर्षि दयानंदअनन्त पई
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महर्षि दयानन्द के जीवन पर आधारित पुस्तक....
Maharshi Dayanand A Hindi Book by Anant Pai
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
महर्षि दयानन्द
यद्यपि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के पहले भी लोगों का ध्यान इस ओर गया था कि हिन्दू समाज में अनेक बुराइयाँ आ गईं है, लेकिन इन बुराइयों को दूर करने के लिए समाज सुधार के आंदोलन 1857 के बाद ही पनप सके, क्योंकि देश में एक राजनैतिक जागृति आ गई थी।
सामाजिक सुधार के क्षेत्र में सबसे सशक्त व्यक्तित्व स्वामी दयानन्द सरस्वती का था। यदि हम यह ध्यान रखें कि स्वामी दयानन्द अंग्रेजी शिक्षा से सदा दूर रहे तो उनके जीवन और उनके कृतित्व का महत्त्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि मैकाले के समय से कई प्रख्यात भारतीय भी यही मानते थे कि भारतीय समाज सुधारकों को नये विचार अंग्रेजी शिक्षा से मिले थे।
राजा राममोहन राय की ही भाँति स्वामी दयानन्द मूर्तिपूजा, जाति-पाँति और ऊँच-नीच का विरोध किया था। उन्होंने स्त्री और शिक्षा और विधवा विवाह का भी समर्थन किया था।
लेकिन राजा राममोहन राय तथा उस समय के कुछ अन्य समाज सुधारकों की तरह स्वामी दयानन्द ने अपने कार्य को उच्च शिक्षित वर्ग के बीच ही सीमित नहीं रखा। वे देश के एक कोने से दूसरे कोने तक घूम-घूम कर समाज के हर वर्ग के लोगों से खुल कर मिले जुले। और जिनके भी सम्पर्क में आये उनमें एक नयी दृष्टि और नई चेतना भर दी।
उनका निश्चित विश्वास था कि कोई देश तब तक बड़ा नहीं हो सकता जब तक उस देश के लोगों में एकता और शिक्षा का प्रसार न हो, तथा उस देश की नारियाँ समाज में अपना उचित अधिकार न प्राप्त करें।
सामाजिक सुधार के क्षेत्र में सबसे सशक्त व्यक्तित्व स्वामी दयानन्द सरस्वती का था। यदि हम यह ध्यान रखें कि स्वामी दयानन्द अंग्रेजी शिक्षा से सदा दूर रहे तो उनके जीवन और उनके कृतित्व का महत्त्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि मैकाले के समय से कई प्रख्यात भारतीय भी यही मानते थे कि भारतीय समाज सुधारकों को नये विचार अंग्रेजी शिक्षा से मिले थे।
राजा राममोहन राय की ही भाँति स्वामी दयानन्द मूर्तिपूजा, जाति-पाँति और ऊँच-नीच का विरोध किया था। उन्होंने स्त्री और शिक्षा और विधवा विवाह का भी समर्थन किया था।
लेकिन राजा राममोहन राय तथा उस समय के कुछ अन्य समाज सुधारकों की तरह स्वामी दयानन्द ने अपने कार्य को उच्च शिक्षित वर्ग के बीच ही सीमित नहीं रखा। वे देश के एक कोने से दूसरे कोने तक घूम-घूम कर समाज के हर वर्ग के लोगों से खुल कर मिले जुले। और जिनके भी सम्पर्क में आये उनमें एक नयी दृष्टि और नई चेतना भर दी।
उनका निश्चित विश्वास था कि कोई देश तब तक बड़ा नहीं हो सकता जब तक उस देश के लोगों में एकता और शिक्षा का प्रसार न हो, तथा उस देश की नारियाँ समाज में अपना उचित अधिकार न प्राप्त करें।
-स्वामी सत्य प्रकाश सरस्वती
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